किकिंग बॉल डॉक्यूमेंट्री (kicking balls documentary) को हाल ही में बनाई रिलीज हुई है | इस डॉक्यूमेंट्री के निर्माता है | यह 40 मिनट की डॉक्यूमेंट्री जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 7 पुरस्कार मिल चुके है | यह kicking balls documentary में राजस्थान के अजमेर जिले के केकड़ी उपखंड के 13 गाँव में फ़ुटबॉल खेलने वाली लड़कियों के जीवन को दर्शाती है |
किकिंग बॉल डॉक्यूमेंट्री एक सामान्य जीवन को दर्शाती है लेकिन हकीकत में अगर देखा जाए तो राजस्थान में बहुत सारी बेटियाँ आज भी बाल विवाह की शिकार हो रही है | इन बेटियों के द्वारा बाल विवाह के खिलाफ खड़ा होने के लिए फुटबॉल ही एक सहारा बना है | केकड़ी उपखंड में कुल 13 गाँव की 550 लकड़ियाँ वर्तमान में फुटबॉल से जुड़ी है | आई आपन यहाँ जानते है की किस तरह बाल विवाह के खिलाफ यह लड़कियां खड़ी हुई है | इस पहल को गाँव में किस के द्वारा शुरु किया गया है |
किकिंग बॉल डॉक्यूमेंट्री में केकड़ी उपखंड
राजस्थान में बहुत सारे परिवारों में बाल विवाह हो रहे है उसी तरह केकड़ी उपखंड में बाल विवाह जारी है लेकिन अब इस गाँव की लड़कियों ने अपनी सगाई तक तोड़ दी है, जो सिर्फ फुटबॉल के कारण है | बहुत सारी लकड़ियों के अपना गौना तक रुकवा दी है | आधुनिक समाज में लड़कियों भी लड़कों की तरह अपना जीवन स्वतंत्र रूप जी सकती है | इसी तरह किकिंग बॉल डॉक्यूमेंट्री में इस केकड़ी उपखंड की इन लड़कियों का जीवन में किए गए संघर्ष को बताया गया है |
kicking balls documentary जो सिर्फ 40 मिनट की ही बनी है लेकिन इस डॉक्यूमेंट्री ने न्यूयॉर्क फिल्म फेस्टिवल सहित कुल 7 पुरस्कार प्राप्त किए है | इस डॉक्यूमेंट्री में फुटबॉल के कारण कितनी लड़कियों का जीवन बदला है और कितनी लड़कियों ने अपने नए सपनों के लिए संघर्ष करना शुरू किया है | यही इस डॉक्यूमेंट्री में देखने को मिलता है | सामाजिक सोच को बदला गया है |
केकड़ी उपखंड में फुटबॉल की शुरुआत
किसी भी नई पहल की शुरुआत कहीं न कहीं समाज के लोग ही आ कर करते है लेकिन अजमेर जिले में केकड़ी उपखंड में फुटबॉल की शुरुआत करती है महिला जन अधिकारी समिति की डायरेक्टर इंदिरा पंचौली और समन्वयक पद्या | यह दोनों बाल विवाह को रोकने के लिए बंगाल गई थी | यहाँ इन्होंने देखा कि लड़कियों फुटबॉल खेलने के लिए स्कूल के बैग में खेल के कपड़े लाती है और स्कूल के बाद यह थानों में खेलती है |
इसी को देखते हुए इन दोंनो के मन में विचार आया और यह अपने अजमेर में बदलाव करना का सोचा | फिर गांवों में खेलों के आयोजन शुरू करवाए गए | धीरे - धीरे बच्चों के साथ इनके परिवारों ने रुचि दिखानी शुरू की | लेकिन इन परिवारों में भी बहुत सारे लोग विचार अलग देने लगे | फुटबॉल को लड़कों का खेल बताने लगे और लड़कियों का अगर शरीरिक रूप से कुछ नुकसान हो गया तो शादी कौन करेगा | यह सबसे बड़ा सवाल था | एक गाँव से दूसरे गाँव में लड़कियों को भेजने तक मना कर दिया | लेकिन समय के साथ धीरे - धीरे बदलाव आया |
वर्तमान में एक अकेली केकड़ी उपखड़ में 13 गाँव की कुल 550 लड़कियों इस फुटबॉल को खेलती है | आपको बता दे की इनमें से 15 लड़कियों नेशनल टूर्नामेंट खेल चुकी है और 6 लड़कियों ने दी लाइसेंस के कोच बन गयी है | इन सभी में से 250 से ज्यादा लड़कियों ने अपने परिवार के खिलाफ खड़ी हो कर बाल विवाह को रुकवाया है |
फ़ुटबॉल के जरिए लड़कियों का संघर्ष
kicking balls documentary में केकड़ी की फुटबॉल खेलने वाली लड़कियों के संघर्ष की कहानी देखने को मिलती है | बहुत सारी लड़कियों कम उम्र में शादी करने के बाद गौना को रुकाया है जो सिर्फ फुटबॉल के कारण है | शुरुआत में इन लड़कियों को सरकारी स्कूलों के मैदानों में फुटबॉल खेलने के लिए मैदान नहीं मिलता था, इस खेल को सिर्फ लड़कों को बताया गया, जो लड़कियां बाल विवाह की शिकार हुई उन्होंने अपने पति तक को छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा |
सुमित्रा मेघवाल जो हंसियावास की रहने वाली है जो कहती है कि मेरी 5वीं बाल विवाह हुआ था और 10वीं में गौण होने लगा तो कानून की मदद से यह गौण रुकाया, जो फुटबॉल में करियर दिखने लगा और अब बेंगलुरू में टेक्सटाइल क्षेत्र में हूँ| तेवड़ों की ढाणी की रहने वाली पिंकी गुर्जर कहती है कि 17 साल की आयु में शादी हो गयी लेकिन मैने शर्त रखी, फुटबॉल खेलने और पढ़ने से नहीं रोका जाएगा | वर्तमान में कोच बनी हुई है |
मूल्यांकन
किकिंग बॉल डॉक्यूमेंट्री जो केकड़ी उपखंड की कहानी नहीं दर्शाती है बल्कि यह राजस्थान में रहने वाले हर परिवार की लकड़ी के जीवन को दर्शाती है | हर लकड़ियों को अपने जीवन के लिए सबसे पहले अपने परिवार से लड़ना पड़ता है | इसके साथ फिर समाज की बातों से | किसी न किसी तरीकों से इनको गुजरना ही पड़ता है |
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